अगर हो जाए चैक बांउस तो क्या करें ?
पराक्रम्य लिखित अधिनियम, 1881 (The Negotiable Instruments Act, 1881)नगदी के लेनदेन के झंझट से बचने का एक बेहतर उपाय होता हैं, चैक के द्वारा भुगतान लेना और देना, लेकिन खाते में रकम न होने के कारण चैक लौट आने से पैदा होने वाले परिणाम अपराध की श्रेणी में आते हैं। भारत की अदालतों में सर्वाधिक मुकद्दमें चैकों के भुगतान की विफलता से जुड़े हुए हैं। हालिया खबरों के अनुसार सिर्फ दिल्ली में ही चैक बाउंस के पांच लाख से ज्यादा मुकद्दमें अदालतों में चल रहे हैं। चैक के भुगतान की विफलता संबंधी कानूनी कार्यवाही और उसके दौरान आने वाली मुसीबतों से बचाव के संबंध में निम्नलिखित जानकारी सहायक रहेगी। डा0 केएस भाटी, सिनिअर अधिवक्ता, सुप्रीम कोर्ट
संरक्षक, सोशल डेवलेपमैंट वेलफेयर सोसाइटी (रजि0 एनजीओ)
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चैक द्वारा भुगतान की विफलतालोग अपने लेन-देन के निपटारे के लिए अक्सर चैक जारी करते हैं, ऐसा करने से पहले उन्हें सुनिशिचत करना चाहिए कि क्या उनके खाते में पर्याप्त रकम हैं या उन्होंने पहले से आगे की तिथि के कुछ चैक तो नहीं जारी किए हुए हैं, जिनकी वजह से खाते में पर्याप्त पैसा नहीं रहेगा। लोगों को इस बात का ख्याल रखना चाहिए कि पराक्रम्य लिखित अधिनियम
(The Negotiable Instruments Act, 1881) की धारा 138 के तहत चैक भुगतान की विफलता एक अपराध हैं।
क्या है धारा 138बैंक खाता धारक द्वारा जारी किया गया कोर्इ चैक यदि किसी कर्ज या बिल को चुकाने के लिए दिया गया हैं और वह खाते में अपर्याप्त रकम के आधार पर चैक बिना भुगतान के वापिस आ जाता हैं, तो यह एक अपराध हैं, जिस कारण दो साल तक की सजा या चैक की रकम की दुगनी रकम तक का जुर्माना या दोनों हो सकते हैं, लेकिन इसकी निम्नलिखित तीन शर्तें हैं-
1. चैक बाउंस होना एक अपराध हैं, जब बैंक में तीन महीने में या उतने समय के अंदर चैक पेश किया जाए, जितने समय तक वह वैध हैं।
2. चैक पाने वाला बैंक में चैक पेश करता हैं। जिस तारीख को उसे बैंक से चैक बाउंस होने की खबर मिलती हैं, उसके 30 दिनों के अंदर चैक जारी करने वाले को नोटिस भेजा जाए। इस नोटिस में बताया जाता हैं कि रकम का भुगतान किया जाए।
3. अगर चैक देने वाला नोटिस मिलने के 15 दिन के अंदर चैक की रकम का भुगतान न करें।
ध्यान दें कि चैक जब तक (तीन महीने तक) वैध हैं, तब-तक वह कर्इ बार बैंक में पेश किया जा सकता हैं। देनदार का चैक बाउंस होने पर क्या करेंकानूनी नोटिस दें1. बैंक से चैक बाउंस होने की सूचना मिलने पर चैक जारी करने वाले को 30 दिनों के अंदर नोटिस भेज दें। यह नोटिस खुद अथवा वकील के जरिए भेजा जा सकता हैं। नोटिस मौखिक या लिखित में, स्वयं, प्रतिनिधि या डाक द्वारा भेजा जा सकता हैं। किंतु मौखिक नोटिस को साबित करना कठिन होता हैं।
2. नोटिस मिलने पर 15 दिनों के अंदर चैक जारी करने वाला यदि चैक राशि का भुगतान नहीं करता हैं, तो 15 दिन बीतने के बाद क्रिमिनल कोर्ट में मुकदमा दायर करें। आप अपने घर के नजदीक वाले जिला न्यायालय में मैट्रोपालिटन मेंजिस्ट्रेट या जुडि़शल मेंजिस्टे्रट के यहां मुकद्दमा कर सकते हैं।
सावधानियां वकालतनामा एवं जरूरी स्टैंप लगाकर शिकायत दर्ज करें।
-खर्च लगभग 200 रूपये
-मुकद्दमा (कंपलेंट पिटिशन) एक एफिडेविट (शपथ पत्र) के साथ दाखिल की जाती हैं, जिसमें मुख्यत: लिखा होता हैं कि (कंपलेंट) शिकायत की सारी बातें सच हैं और उसकी जानकारी शिकायत कत्र्ता को हैं।
कुछ अन्य महत्वपूर्ण जानकारियां 1. यदि नोटिस डाक से भेजने पर यह बताया जाए कि आरोपी घर पर नहीं था या पत्ता नहीं मिला, तब भी नोटिस का तामील होना माना जाएगा।
2. यदि एक बार नोटिस बिना प्रापित के लौट आता हैं तो दोबारा भेजा जा सकता हैं, पर कार्यवाही उस दिन से लागू होगी जिस दिन पहला नोटिस भेजा गया था।
3. यदि शिकायत (कंपलेंट) 30 दिन के बाद दाखिल की जाती हैं, तो देरी को माफ किए जाने की दरख्वास्त देनी पड़ती हैं। देरी की वजह उचित, पर्याप्त और विश्वसनीय होनी चाहिए।
4. वस्तुओं की सप्लार्इ के लिए कान्ट्रैक्ट जिस प्रदेश में (दिल्ली) होता हैं और माल की आपूर्ति भी दिल्ली में होती हैं परंतु चैक पं0 बंगाल से जारी होता हैं, जहां चैक जारी करने वाले का आफिस हैं, ऐसी परिस्तिथि में कोर्ट का क्षेत्राधिकार दिल्ली होगा न कि पं0 बंगाल।
5. चैक कर्ज अदायगी के लिए दिया गया या कर्ज की सिक्यूरिटी के बतौर, इससे मुकद्दमें पर कोर्इ फर्क नहीं पड़ता।
6. यदि चैक जारी करने वाले का चैक एक बार बाउंस हो जाए और चैक पाने वाले के कहने पर चैक जारी करने वाला उसकी अवधि तीन महीने आगे बढ़ा देता हैं किंतु चैक फिर बाउंस हो जाता हैं, तो चैक जारी करने वाला यह नहीं कह सकता कि वह बढ़ार्इ गर्इ तारीख पर चैक बाउंस होने पर अपराध से मुक्त हो गया । इस बढ़ी अवधि के आधार पर ही मुकद्दमा चलेगा।
7. यदि चैक जारी करने वाले को सजा एवं जुर्माना हो जाता हैं और उसके बाद दोनों पक्षों में सुलह हो जाती हैं तो सजा एवं जुर्माना अदालत द्वारा रद्द किये जा सकते हैं।
8. आरोपी के लिए यह जरूरी नहीं हैं कि वह शिकायत (कंपलेंट) झुठलाने के लिए अपनी तरफ से गवाह लाए। वह शिकायत दर्ज करानेवाले का क्रास एग्जामिनेशन कर सकता हैं।
9. चैक यदि यह कह कर लौटा दिया जाता हैं कि अकाउंट बंद कर दिया गया हैं तो भी धारा 138 के अंर्तगत अपराध हो जाता हैं।
10. आगामी तारीख में जारी चैक की वैधता (पोस्ट डेटेड चैक की वैलिडिटी) उस दिन से शुरू होती हैं जिस दिन की तारीख उस पर लिखी हैं।
11. धारा 138 के तहत चैक पाने वाले का (आथोराइज्ड एजेंट) अधिकृत प्रतिनिधि भी मुकद्दमा दायर कर सकता है।
12. नोटिस में यह नहीं भी लिखा हो कि 15 के अंदर भुगतान करें, तब भी 15 दिन के अंदर-अंदर ही भुगतान किया जाना हैं।
अगर चैक बाउंस हो--चैक बांउस होने पर अपने नजदीकी मेट्रोपालिटन या फस्र्ट क्लास जुडिशल मैजिस्ट्रेट की कोर्ट में केस दायर करें।
-ध्यान रखें कि इस अपराध में किसी भी लेवल पर पेंमेट और केस लड़ने में खर्च हुर्इ रकम चुकाकर समझौता किया जा सकता हैं।
इस अपराध में न्यायिक कार्यवार्इ की वास्तविक मंशा चैक पाने वाले को उसके पैसे दिलवाना हैं, अभियुक्त को जेल भेजना नहीं। सजा होने पर भी चैक प्रदाता चैक प्राप्तकत्र्ता को रूपये देकर या कोर्इ और समझौता की अदालत में सुलह की अर्जी डाल सकता हैं और जेल जाने से बच सकता हैं।
-चैक जारी करने वाला खुद से एक वकालतनामा फाइल कर केस की पहली तारीख पर हाजिर होकर अदालत से कहे कि उसे एक-दो महीने का वक्त दिया जाए। इस दौरान वह चैक राशि का भुगतान करके पहली ही तारीख पर बैंक ड्राफ्ट या नकद राशि अदालत के सामने चैक पाने वाले को देकर मुकद्दमा बंद करवा सकता हैं।
-अगर केस की पहली तारीख के दौरान पूरा अमाउंट देना मुमकिन नहीं हो पा रहा हैं तो कोर्ट से किस्त बंधवाकर या एक और तारीख लेकर उस दिन तक पेमंट किया जा सकता हैं। ऐसा करते ही मुकद्दमा बंद किया जा सकता हैं।
-चैक देने वाला अपने बचाव में कह सकता हैं कि उसने चैक जारी नहीं किया, लेकिन इस तरह के बचाव में वजह सच्ची होनी चाहिए।
चैक बाउंस में जुर्माने की रकम दोगुनी से अधिक नहीं हो सकतीसर्वोच्च न्यायालय ने अपने एक फैसले में कहा गया हैं कि अदालतें चैक बांउस मामले में उस चैक की राशि से दोगुना से अधिक जुर्माना नहीं लगा सकतीं। न्यायमूर्ति टीएस ठाकुर और विक्रमजीत सेन की पीठ ने कहा कि पहली और सबसे बड़ी बात यह हैं कि जुर्माना लगाने के अधिकार को कानून के तहत चैक की राशि के दोगुुना तक ही सीमित रखा जाए। कलकत्ता हार्इ कोर्ट के आदेश को दरकिनार करते हुए उच्चत्तम न्यायालय ने उपर्युक्त आदेश दिया। उच्च न्यायालय ने सोमनाथ सरकार नाम के एक व्यकित पर 69 हजार 500 रूपये का चैक बाउंस होने पर एक लाख 49 हजार 500 रूपये भुगतान करने का निर्देश दिया था। इस मामले में निचली अदालत ने उसे 6 माह जेल के साथ चैक बाउंस होने के मामले में 80 हजार रूपये क्षतिपूर्ति देने का आदेश दिया था। इसके खिलाफ आरोपी सोमनाथ ने हार्इ कोर्ट में अपील की। हार्इ कोर्ट ने इसके अलावा अलग से 69 हजार 500 रूपये भुगतान करने का निर्देश दे दिया और जेल की सजा खत्म कर दी। इसके बाद सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में यह कहते हुए दया याचिका दायर की थी कि वह इतनी बड़ी रकम अदा करने में असमर्थ हैं। सुप्रीम कोर्ट ने हार्इ कोर्ट का आदेश दरकिनार करते हुए जुर्माने की राशि को 69 हजार 500 से घटाकर 20 हजार रूपये कर दिया।
चेक बाउंस होने पर एक नहीं दो मुकदमे चल सकते हैंसावधान हो जाएं। चेक बाउंस होने पर आपके खिलाफ एक नहीं दो मुकदमे चल सकते हैं। एक तो चेक बाउंस होने का और दूसरा धोखाधड़ी करने का। सुप्रीम कोर्ट ने एक फैसले में कहा है कि दो मुकदमों की सुनवाई दोहरे खतरे के सिद्धांत का उल्लंघन नहीं करते। न्यायमूर्ति बी एस चौहान और जे एस खेहर की पीठ ने गुजरात के रहने वाली संगीताबेन महेंद्रभाई पटेल की अपील खारिज करते हुए यह व्यवस्था दी है। इस मामले में संगीताबेन ने गुजरात के पाटन सिथत मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट के समक्ष लंबित धोखाधड़ी और विश्वासघात के मामले को खारिज कराने के लिए सुप्रीम कोर्ट में अपील की थी। वह सुप्रीम कोर्ट इस तर्क के साथ पहुंची थी कि दोहरे खतरे के सिद्धांत के मुताबिक, एक अपराध के लिए उस पर दो बार मुकदमा नहीं चल सकता। संविधान के अनुच्छेद 22 और आपराधिक प्रक्रिया संहिता की धारा 300 (1) में प्रावधान किया गया है कि एक ही अपराध के लिए किसी व्यकित को दो बार सजा नहीं दी जा सकती। शीर्ष कोर्ट ने उसकी अपील खारिज करते हुए कहा कि यह सिद्धांत किसी अपराध के मामले की सुनवाई पर रोक नहीं लगाता। यह केवल उन सुबूतों से किसी सच्चाई को साबित करने से रोकता है जिनका इस्तेमाल पहले किसी आपराधिक मामले की सुनवाई में हो चुका है। वर्ष 2003 में 20 लाख रुपये का चेक बाउंस के मामले में संगीताबेन को निचली अदालत ने खरीद-फरोख्त दस्तावेज (एनआइ) कानून के तहत दोषी करार दिया था। जिसे चेक दिया गया था उसने 6 फरवरी 2004 को पुलिस के पास भी शिकायत दर्ज कराई थी और संगीताबेन पर विश्वासघात व धोखाधड़ी का आरोप लगाया था।
हरिओम गुप्ता को वापिस मिली रकमएक साथी गुप्ता को दिया फेरंड्रली लोन वापिस न मिलने और उसके द्वारा दिया गया चैक बाउंस हो जाने के
बाद गुप्ताजी ने समाजिक संस्था सोशल डेवलपमेंट वेलफेयर सोसाइटी द्वारा संचालित निशुल्क कानून सलाह केंद्र में संपर्क किया, और जिला न्यायालय द्वारका में वकील के द्वारा मामला दर्ज कराया, जिस पर केवल 6-7 तारीखों की सुनवार्इ के बाद न्यायालय द्वारा पूरी रकम ब्याज सहित लौटाने का फैसला सुनाया गया। न्यायालय के फैसले के बाद गुप्ताजी को अपनी रकम वापिस मिल गर्इ।
3 साल बाद हुआ समझौता, फैसले में देरी से नहीं हो पाती नुकसान की भरपार्इअपनी पीड़ा बताते हुए बिजली के सामान के विक्रेता दिवाकर गुप्ता ने बताया कि उनके मुकद्दमे में 3 साल बाद समझौता हुआ और केवल 10 प्रतिशत सालाना ब्याज दर के साथ ही रकम वापिस मिली। एचओ इलेक्ट्रीकल कालकाजी कोंटे्रक्टर ने उनसे 3 लाख का सामान लिया। जिसके एवज में 1 महीने बाद की तारीख का चैक दिया। दो बार चैक बाउंस होने के बाद उन्होंने कोर्ट में मुकद्दमा दायर किया, जिससे 3 साल मुकद्दमा चला और ब्याज व रकम प्राप्त हुर्इ। गुप्ता बताते हैं कि ब्याज से ज्यादा तो उनकी धनराशि मुकद्दमे में ही लग गर्इ और मानसिक परेशानी भी हुर्इ और प्रत्येक तारीख पर पूरा दिन लग जाता था।
ठेकेदार ने समझौता कर दी दुकानदार की पेमेंट सेनेट्री एवं टाइलस के दुकानदार नवीन गुप्ता से भवन निर्माण करने वाले ठेकेदार जब्बारअली अंसारी ने लगभग 30 हजार की टाइल व अन्य सामान खरीदा, जिसके एवज में उसने एक हफ्ते बाद की तारीख का चैक दिया, जो बाद में खाते में पर्याप्त धन न होने के कारण वापिस आ गया। पेमेंट देने में टाल-मटोल करने के बाद नवीन गुप्ता ने ठेकेदार को लीगल नोटिस भेज दिया। लीगल नोटिस का जवाब न आने के बाद नवीन गुप्ता ने कोर्ट की शरण ली। कोर्ट द्वारा लीगल नोटिस जारी किए जाने के बाद बावजूद भी ठेकेदार कोर्ट में उपसिथत नहीं हुआ, तो कोर्ट ने अरेस्ट वारंट जारी कर दिया। साल भर में लगभग 6-7 तारीखों के बाद ठेकेदार ने समझौता कर लिया और दुकानदार को ब्याज सहित रकम लौटानी पड़ी।