क्यों हो जाते हैं पितृ कुपित-क्यों लगता हैं पितृ दोष
पितृ कौन होते हैं
-ज्ञाताओं के अनुसार परिवार में जब किसी की अकाल मुर्त्यू होती हैं तो वह पितृ का स्थान लेता हैं और परिवार का पितृ देव बनता हैं.
-हमारे परिवार के जिन पूर्वजों का देहांत हो चुका है, उन्हें हम पितृ मानते हैं. जब तक किसी व्यक्ति की मृत्यु
के बाद उसका जन्म नहीं हो जाता वह सूक्ष्म लोक में रहता है. ऐसा मानते हैं कि इन पितरों का आशीर्वाद सूक्ष्मलोक से परिवार जनों को मिलता रहता है. पितृपक्ष में पितृ धरती पर आकर अपने लोगों पर ध्यान देते हैं और आशीर्वाद देकर उनकी समस्याएं दूर करते हैं.
-पितृ गण हमारे पूर्वज हैं जिनका ऋण हमारे ऊपर है ,क्योंकि उन्होंने कोई ना कोई उपकार हमारे जीवन के लिए किया है मनुष्य लोक से ऊपर पितृ लोक है,पितृ लोक के ऊपर सूर्य लोक है एवं इस से भी ऊपर स्वर्ग लोक है।
पितृ कौन होते हैं
-ज्ञाताओं के अनुसार परिवार में जब किसी की अकाल मुर्त्यू होती हैं तो वह पितृ का स्थान लेता हैं और परिवार का पितृ देव बनता हैं.
-हमारे परिवार के जिन पूर्वजों का देहांत हो चुका है, उन्हें हम पितृ मानते हैं. जब तक किसी व्यक्ति की मृत्यु
के बाद उसका जन्म नहीं हो जाता वह सूक्ष्म लोक में रहता है. ऐसा मानते हैं कि इन पितरों का आशीर्वाद सूक्ष्मलोक से परिवार जनों को मिलता रहता है. पितृपक्ष में पितृ धरती पर आकर अपने लोगों पर ध्यान देते हैं और आशीर्वाद देकर उनकी समस्याएं दूर करते हैं.
-पितृ गण हमारे पूर्वज हैं जिनका ऋण हमारे ऊपर है ,क्योंकि उन्होंने कोई ना कोई उपकार हमारे जीवन के लिए किया है मनुष्य लोक से ऊपर पितृ लोक है,पितृ लोक के ऊपर सूर्य लोक है एवं इस से भी ऊपर स्वर्ग लोक है।
आत्मा जब अपने शरीर को त्याग कर सबसे पहले ऊपर उठती है तो वह पितृ लोक में जाती है ,वहाँ हमारे पूर्वज मिलते हैं अगर उस आत्मा के अच्छे पुण्य हैं तो ये हमारे पूर्वज भी उसको प्रणाम कर अपने को धन्य मानते हैं की इस अमुक आत्मा ने हमारे कुल में जन्म लेकर हमें धन्य किया इसके आगे आत्मा अपने पुण्य के आधार पर सूर्य लोक की तरफ बढती है।
वहाँ से आगे ,यदि और अधिक पुण्य हैं, तो आत्मा सूर्य लोक को भेज कर स्वर्ग लोक की तरफ चली जाती है,लेकिन करोड़ों में एक आध आत्मा ही ऐसी होती है ,जो परमात्मा में समाहित होती है जिसे दोबारा जन्म नहीं लेना पड़ता मनुष्य लोक एवं पितृ लोक में बहुत सारी आत्माएं पुनः अपनी इच्छा वश ,मोह वश अपने कुल में जन्म लेती हैं।
वहाँ से आगे ,यदि और अधिक पुण्य हैं, तो आत्मा सूर्य लोक को भेज कर स्वर्ग लोक की तरफ चली जाती है,लेकिन करोड़ों में एक आध आत्मा ही ऐसी होती है ,जो परमात्मा में समाहित होती है जिसे दोबारा जन्म नहीं लेना पड़ता मनुष्य लोक एवं पितृ लोक में बहुत सारी आत्माएं पुनः अपनी इच्छा वश ,मोह वश अपने कुल में जन्म लेती हैं।
पितृ परिवार के संकटो को रोकता हैं परिवार पर अपना आशीर्वाद बनाये रखता हैं. पितृ ही परिवार का प्रथम देव होता जो पितृ लोक से परिवार अपर अपनी किर्प्या बनाये रखता हैं. सुनते हैं की तीसरी पीढ़ी के बाद अगर कोई नया पितृ का स्थान नहीं लेता तो चौथी पीढ़ी से पितृ का प्रभाव काम होता जाता हैं.
अब पहले दो बातें जानने के लिया यहाँ आवश्यक हो जाती हैं.
अब पहले दो बातें जानने के लिया यहाँ आवश्यक हो जाती हैं.
१. परिवार: एक दादा की जितनी भी औलाद होती हैं फिर चाहे वह एक साथ रहे या अलग-अलग या देश में रहे या विदेश में एक परिवार कहलाता हैं.२. अकाल मुर्त्यु : अकाल मुर्त्यु का तातपर्य हैं की बिना औलाद जो पुरुष गुजर जाता हैं वह अकाल मुर्त्यु होती हैं। फिर चाहे वह छोटा बच्चा हो या बड़ी उम्र का।क्यों हो जाते हैं पितृ कुपित-क्यों लगता हैं पितृ दोष हमारे ये ही पूर्वज सूक्ष्म व्यापक शरीर से अपने परिवार को जब देखते हैं ,और महसूस करते हैं कि हमारे परिवार के लोग ना तो हमारे प्रति श्रद्धा रखते हैं और न ही इन्हें कोई प्यार या स्नेह है और ना ही किसी भी अवसर पर ये हमको याद करते हैं,ना ही अपने ऋण चुकाने का प्रयास ही करते हैं तो ये आत्माएं दुखी होकर अपने वंशजों को श्राप दे देती हैं,जिसे “पितृ- दोष” कहा जाता है।
नारायण बलि कर्म विधि हेतु मुहुर्त
पितृ दोष एक अदृश्य बाधा है ?ये बाधा पितरों द्वारा रुष्ट होने के कारण होती है पितरों के रुष्ट होने के बहुत से कारण हो सकते हैं ,आपके आचरण से,किसी परिजन द्वारा की गयी गलती से ,श्राद्ध आदि कर्म ना करने से ,अंत्येष्टि कर्म आदि में हुई किसी त्रुटि के कारण भी हो सकता है।इसके अलावा मानसिक अवसाद,व्यापार में नुक्सान ,परिश्रम के अनुसार फल न मिलना ,वैवाहिक जीवन में समस्याएं.,कैरिअर में समस्याएं या संक्षिप्त में कहें तो जीवन के हर क्षेत्र में व्यक्ति और उसके परिवार को बाधाओं का सामना करना पड़ता है पितृ दोष होने पर अनुकूल ग्रहों की स्थिति ,गोचर ,दशाएं होने पर भी शुभ फल नहीं मिल पाते,कितना भी पूजा पाठ ,देवी ,देवताओं की अर्चना की जाए ,उसका शुभ फल नहीं मिल पाता।पितृ दोष दो प्रकार से प्रभावित करता है ?१.अधोगति पितृ दोष : अधोगति वाले पितरों के दोषों का मुख्य कारण परिजनों द्वारा किया गया गलत आचरण ,अतृप्त इच्छाएं ,जायदाद के प्रति मोह और उसका गलत लोगों द्वारा उपभोग होने पर, विवाहादि में परिजनों द्वारा गलत निर्णय,परिवार के किसी प्रियजन को अकारण कष्ट देने पर पितर क्रुद्ध हो जाते हैं, परिवार जनों को श्राप दे देते हैं और अपनी शक्ति से नकारात्मक फल प्रदान करते हैं।२.उर्ध्वगति पितृ दोष : उर्ध्व गति वाले पितर सामान्यतः पितृदोष उत्पन्न नहीं करते ,परन्तु उनका किसी भी रूप में अपमान होने पर अथवा परिवार के पारंपरिक रीति-रिवाजों का निर्वहन नहीं करने पर वह पितृदोष उत्पन्न करते हैं। इनके द्वारा उत्पन्न पितृदोष से व्यक्ति की भौतिक एवं आध्यात्मिक उन्नति बिलकुल बाधित हो जाती है ,फिर चाहे कितने भी प्रयास क्यों ना किये जाएँ ,कितने भी पूजा पाठ क्यों ना किये जाएँ,उनका कोई भी कार्य ये पितृदोष सफल नहीं होने देता।
हमारे ऊपर मुख्य रूप से ५ ऋण होते हैं जिनका कर्म न करने(ऋण न चुकाने पर ) हमें निश्चित रूप से श्राप मिलता है ,ये ऋण हैं : मातृ ऋण ,पितृ ऋण ,मनुष्य ऋण ,देव ऋण और ऋषि ऋण।माता एवं माता पक्ष के सभी लोग जिनमेंमा,मामी ,नाना ,नानी ,मौसा ,मौसी और इनके तीन पीढ़ी के पूर्वज होते हैं ,क्योंकि माँ का स्थान परमात्मा से भी ऊंचा माना गया है अतः यदि माता के प्रति कोई गलत शब्द बोलता है ,अथवा माता के पक्ष को कोई कष्ट देता रहता है,तो इसके फलस्वरूप उसको नाना प्रकार के कष्ट भोगने पड़ते हैं | इतना ही नहीं ,इसके बाद भी कलह और कष्टों का दौर भी परिवार में पीढ़ी दर पीढ़ी चलता ही रहता है |पिता पक्ष के लोगों जैसे बाबा ,ताऊ ,चाचा, दादा-दादी और इसके पूर्व की तीन पीढ़ी का श्राप हमारे जीवन को प्रभावित करता है पिता हमें आकाश की तरह छत्रछाया देता है,हमारा जिंदगी भर पालन -पोषण करता है ,और अंतिम समय तक हमारे सारे दुखों को खुद झेलता रहता है। पर आज के के इस भौतिक युग में पिता का सम्मान क्या नयी पीढ़ी कर रही है ? पितृ -भक्ति करना मनुष्य का धर्म है, इस धर्म का पालन न करने पर उनका श्राप नयी पीढ़ी को झेलना ही पड़ता है ,इसमें घर में आर्थिक अभाव,दरिद्रता ,संतानहीनता ,संतान को विबिन्न प्रकार के कष्ट आना या संतान अपंग रह जाने से जीवन भर कष्ट की प्राप्ति आदि। माता-पिता प्रथम देवता हैं, जिसके कारण भगवान गणेश महान बने | इसके बाद हमारे इष्ट भगवान शंकर जी ,दुर्गा माँ ,भगवान विष्णु आदि आते हैं ,जिनको हमारा कुल मानता आ रहा है ,हमारे पूर्वज भी भी अपने अपने कुल देवताओं को मानते थे ,लेकिन नयी पीढ़ी ने बिलकुल छोड़ दिया है इसी कारण भगवान /कुलदेवी /कुलदेवता उन्हें नाना प्रकार के कष्ट /श्राप देकर उन्हें अपनी उपस्थिति का आभास कराते हैं। जिस ऋषि के गोत्र में पैदा हुए , वंश वृद्धि की , उन ऋषियों का नाम अपने नाम के साथ जोड़ने में नयी पीढ़ी कतराती है , उनके ऋषि तर्पण आदि नहीं करती है इस कारण उनके घरों में कोई मांगलिक कार्य नहीं होते हैं, इसलिए उनका श्राप पीडी दर पीढ़ी प्राप्त होता रहता है।ऐसे परिवार को पितृ दोष युक्त या शापित परिवार कहा जाता है रामायण में श्रवण कुमार के माता -पिता के श्राप के कारण दशरथ के परिवार को हमेशा कष्ट झेलना पड़ा,ये जग -ज़ाहिर है इसलिए परिवार कि सर्वोन्नती के पितृ दोषों का निवारण करना बहुत आवश्यक है।पितृ दोष निवारण :
पितृ पक्ष में पितरों को श्रद्धा अर्पित करने का कर्म श्राद्ध कहलाता है।घर में पितृ शांति, पितृ दोष निवारण के लिए ये उपाय जरूर करे:--शराब का त्याग करे -मांसाहारी भोजन का त्याग करे
-बुराइयों का त्याग करे -भगवान शिव शंकर से प्रार्थना करें - की हे भोले नाथ मेरे पितृ देवताओं और हमारे द्वारा जो भी पाप कर्म या गलतियां हुयी हैं उन्हें क्षमा कर दे और हम पर किर्प्या करे. हमारे पितरों को पितृलोक में उच्च स्थान दे. मेरे द्वारा किये गए पुण्य कर्मो का पुण्य मेरे पितरो को दे, इस प्रार्थना के बाद भोले नाथ की नियमित पूजा करें।
-पितरों के नाम से पुण्य कर्म करे और उनका पुण्य पितरो को दे
-पितरो के नाम से पूजा - हवन कराये
-घर के बाहर प्रतिदिन सरसों के तेल का दीपक जलाये
-प्रत्येक शनिवार को शिवलिंग पर सरसो का तेल अर्पित करे। सरसो के तेल का दीपक जलाये
-प्रत्येक शनिवार को पीपल के पेड़ पर सरसो के तेल का दीपक जलाये और हनुमान चालीसा का पाठ करे -माँ - बाप घर के बड़े बुढो का सम्मान करे इनकी सेवा करे, प्रतिदिन माँ - बाप और घर में जो भी बड़ा बूढ़ा हो उनके पेअर छूकर आशीर्वाद ले। घर के बड़े - बूढ़े और माँ - बाप के आशीर्वाद से सरे श्राप व बुराइया , बुरी आत्माये दूर हो जाती हैं
श्राद्ध संस्कार- जीवन का एक अबाध प्रवाह है ।। काया की समाप्ति के बाद भी जीव यात्रा रुकती नहीं है ।। आगे
का क्रम भी भली प्रकार सही दिशा में चलता रहे, इस हेतु मरणोत्तर संस्कार किया जाता है ।। सूक्ष्म विद्युत तरंगों के माध्यम से वैज्ञानिक दूरस्थ उपकरण का संचालन (रिमोट ऑपरेशन) कर लेते हैं ।। श्रद्धा उससे भी अधिक सशक्त तरंगें प्रेषित कर सकती है ।। उसके माध्यम से पितरों- को स्नेही परिजनों की जीव चेतना को दिशा और शक्ति तुष्टि प्रदान की जा सकती है ।। मृत्यु के पश्चात् भी पितरों का श्राद्ध संस्कार द्वारा अपनी इसी क्षमता के प्रयोग से पितरों की सद्गति देने और उनके आशीर्वाद पाने का क्रम चलाया जाता है ।। पितर हमारे अदृश्य सहायक बनें, मार्गदर्शक बनें और अपना आशीर्वाद देते रहें, इसी कामना से पितृ पक्ष के 15 दिन प्रयास किया जाता है।हमारे ऊपर मुख्य रूप से ५ ऋण होते हैं जिनका कर्म न करने(ऋण न चुकाने पर ) हमें निश्चित रूप से श्राप मिलता है ,ये ऋण हैं : मातृ ऋण ,पितृ ऋण ,मनुष्य ऋण ,देव ऋण और ऋषि ऋण।माता एवं माता पक्ष के सभी लोग जिनमेंमा,मामी ,नाना ,नानी ,मौसा ,मौसी और इनके तीन पीढ़ी के पूर्वज होते हैं ,क्योंकि माँ का स्थान परमात्मा से भी ऊंचा माना गया है अतः यदि माता के प्रति कोई गलत शब्द बोलता है ,अथवा माता के पक्ष को कोई कष्ट देता रहता है,तो इसके फलस्वरूप उसको नाना प्रकार के कष्ट भोगने पड़ते हैं | इतना ही नहीं ,इसके बाद भी कलह और कष्टों का दौर भी परिवार में पीढ़ी दर पीढ़ी चलता ही रहता है |पिता पक्ष के लोगों जैसे बाबा ,ताऊ ,चाचा, दादा-दादी और इसके पूर्व की तीन पीढ़ी का श्राप हमारे जीवन को प्रभावित करता है पिता हमें आकाश की तरह छत्रछाया देता है,हमारा जिंदगी भर पालन -पोषण करता है ,और अंतिम समय तक हमारे सारे दुखों को खुद झेलता रहता है। पर आज के के इस भौतिक युग में पिता का सम्मान क्या नयी पीढ़ी कर रही है ? पितृ -भक्ति करना मनुष्य का धर्म है, इस धर्म का पालन न करने पर उनका श्राप नयी पीढ़ी को झेलना ही पड़ता है ,इसमें घर में आर्थिक अभाव,दरिद्रता ,संतानहीनता ,संतान को विबिन्न प्रकार के कष्ट आना या संतान अपंग रह जाने से जीवन भर कष्ट की प्राप्ति आदि। माता-पिता प्रथम देवता हैं, जिसके कारण भगवान गणेश महान बने | इसके बाद हमारे इष्ट भगवान शंकर जी ,दुर्गा माँ ,भगवान विष्णु आदि आते हैं ,जिनको हमारा कुल मानता आ रहा है ,हमारे पूर्वज भी भी अपने अपने कुल देवताओं को मानते थे ,लेकिन नयी पीढ़ी ने बिलकुल छोड़ दिया है इसी कारण भगवान /कुलदेवी /कुलदेवता उन्हें नाना प्रकार के कष्ट /श्राप देकर उन्हें अपनी उपस्थिति का आभास कराते हैं। जिस ऋषि के गोत्र में पैदा हुए , वंश वृद्धि की , उन ऋषियों का नाम अपने नाम के साथ जोड़ने में नयी पीढ़ी कतराती है , उनके ऋषि तर्पण आदि नहीं करती है इस कारण उनके घरों में कोई मांगलिक कार्य नहीं होते हैं, इसलिए उनका श्राप पीडी दर पीढ़ी प्राप्त होता रहता है।ऐसे परिवार को पितृ दोष युक्त या शापित परिवार कहा जाता है रामायण में श्रवण कुमार के माता -पिता के श्राप के कारण दशरथ के परिवार को हमेशा कष्ट झेलना पड़ा,ये जग -ज़ाहिर है इसलिए परिवार कि सर्वोन्नती के पितृ दोषों का निवारण करना बहुत आवश्यक है।पितृ दोष निवारण :
पितृ पक्ष में पितरों को श्रद्धा अर्पित करने का कर्म श्राद्ध कहलाता है।घर में पितृ शांति, पितृ दोष निवारण के लिए ये उपाय जरूर करे:--शराब का त्याग करे -मांसाहारी भोजन का त्याग करे
-बुराइयों का त्याग करे -भगवान शिव शंकर से प्रार्थना करें - की हे भोले नाथ मेरे पितृ देवताओं और हमारे द्वारा जो भी पाप कर्म या गलतियां हुयी हैं उन्हें क्षमा कर दे और हम पर किर्प्या करे. हमारे पितरों को पितृलोक में उच्च स्थान दे. मेरे द्वारा किये गए पुण्य कर्मो का पुण्य मेरे पितरो को दे, इस प्रार्थना के बाद भोले नाथ की नियमित पूजा करें।
-पितरों के नाम से पुण्य कर्म करे और उनका पुण्य पितरो को दे
-पितरो के नाम से पूजा - हवन कराये
-घर के बाहर प्रतिदिन सरसों के तेल का दीपक जलाये
-प्रत्येक शनिवार को शिवलिंग पर सरसो का तेल अर्पित करे। सरसो के तेल का दीपक जलाये
-प्रत्येक शनिवार को पीपल के पेड़ पर सरसो के तेल का दीपक जलाये और हनुमान चालीसा का पाठ करे -माँ - बाप घर के बड़े बुढो का सम्मान करे इनकी सेवा करे, प्रतिदिन माँ - बाप और घर में जो भी बड़ा बूढ़ा हो उनके पेअर छूकर आशीर्वाद ले। घर के बड़े - बूढ़े और माँ - बाप के आशीर्वाद से सरे श्राप व बुराइया , बुरी आत्माये दूर हो जाती हैं
श्राद्ध संस्कार- जीवन का एक अबाध प्रवाह है ।। काया की समाप्ति के बाद भी जीव यात्रा रुकती नहीं है ।। आगे
घर में यदि पूर्वजों का पूजन का स्थान बना हुआ है, तो रोज़ शाम को घी या सरसों तेल का दीपक ज़रूर जलाएं।पितरों की मुक्ति हेतु गायत्री का अनुष्ठान करना या करवाना लाभदायक होता है।पितरों की मुक्ति हेतु गायत्री यज्ञ करना या करवाना भी लाभदायक होता है।शनिवार को पीपल के वृक्ष पर दोपहर में जल, पुष्प, अक्षत, दूध, गंगाजल, काले तिल चढ़ाएं और स्वर्गीय परिजनों का स्मरण कर उनसे आशीर्वाद मांगना लाभदायक होता है।यदि आपके पूर्वजों ने आपके पितरो के लिए कोई स्थान बनाया है तो होली, दीपावली एवं अन्य त्यौहार पर उस स्थान पर जाकर पूजा करनी चाहिए।स्त्री यदि ससुराल में बहु रूप में रहती है तो पति के पितर ही उसके पूज्य होंगे। स्त्री यदि मायके में रहती है और उसका पति घर जवाई बन के रहता है तो दोनों मायके पक्ष के ही पितर पूजेंगे।मायके और ससुराल के दोनों पितरों को एक साथ एक आसन में पूजन नहीं किया जाता है।हाँ बारी बारी दो बार में कर सकते हैं। श्राद्ध संस्कार में भी बारी बारी ही करवाया जाता है।पितृ पक्ष, अमावस्या, पूर्णमासी, त्यौहार आदि पर पितरो के नाम से कौवा और चिड़ियों को दाना डालें और पानी दें। पका हुआ भोजन न दें, पके तेल मसाले युक्त भोजन से पक्षीयो को नुकसान हुआ तो पुण्य की जगह पाप के भागीदार बनेंगे।दो संध्याओं में नियमित गायत्री उपासना, दो नवरात्र में व्रत करने वाले ब्राह्मण या ब्राह्मणी मिले तो ही पितृ पक्ष में उन्हें भोजन करवाएं। अगर वो ब्रह्ममय न हुए तो कोई लाभ नहीं मिलेगा।जीवित माता-पिता एवं भाई-बहनों का आदर-सत्कार करना चाहिए। हर अमावस को अपने पितरों का ध्यान करते हुए पीपल पर कच्ची लस्सी, गंगाजल, थोड़े काले तिल, चीनी, चावल, जल, पुष्पादि चढ़ाते हुए ॐ पितृभ्यः नमः मंत्र तथा पितृ सूक्त का पाठ करना शुभ होगा।
हर संक्रांति, अमावस एवं रविवार को सूर्य देव को ताम्र बर्तन में लाल चंदन गंगाजल, शुद्ध जल डालकर बीज मंत्र पढ़ते हुए तीन बार अर्घ्य दें। श्राद्ध के अतिरिक्त इन दिनों गायों को चारा तथा कौए, कुत्तों को दाना एवं असहाय एवं भूखे लोगों को भोजन कराना चाहिए।नारायण नागबलिनारायण नागबलि पूजा के त्र्यम्बकेश्वर ज्योर्तिलिंग मन्दिर महाराष्ट्र में संपर्क करे.
नारायण नागबलि ये दोनो विधी मानव की अपूर्ण इच्छा , कामना पूर्ण करने के उद्देश से किय जाते है इसीलिए ये दोने विधी काम्यू कहलाते है। नारायणबलि और नागबपलि ये अलग-अलग विधीयां है। नारायण बलि का उद्देश मुखत: पितृदोष निवारण करना है । और नागबलि का उद्देश सर्प/साप/नाग हत्याह का दोष निवारण करना है। केवल नारायण बलि यां नागबलि कर नहीं सकतें, इसगलिए ये दोनो विधीयां एकसाथ ही करनी पडती हैं।
हर संक्रांति, अमावस एवं रविवार को सूर्य देव को ताम्र बर्तन में लाल चंदन गंगाजल, शुद्ध जल डालकर बीज मंत्र पढ़ते हुए तीन बार अर्घ्य दें। श्राद्ध के अतिरिक्त इन दिनों गायों को चारा तथा कौए, कुत्तों को दाना एवं असहाय एवं भूखे लोगों को भोजन कराना चाहिए।नारायण नागबलिनारायण नागबलि पूजा के त्र्यम्बकेश्वर ज्योर्तिलिंग मन्दिर महाराष्ट्र में संपर्क करे.
नारायण नागबलि ये दोनो विधी मानव की अपूर्ण इच्छा , कामना पूर्ण करने के उद्देश से किय जाते है इसीलिए ये दोने विधी काम्यू कहलाते है। नारायणबलि और नागबपलि ये अलग-अलग विधीयां है। नारायण बलि का उद्देश मुखत: पितृदोष निवारण करना है । और नागबलि का उद्देश सर्प/साप/नाग हत्याह का दोष निवारण करना है। केवल नारायण बलि यां नागबलि कर नहीं सकतें, इसगलिए ये दोनो विधीयां एकसाथ ही करनी पडती हैं।
निम्नालिखीत कारणोंके लिऐ भी नारायण नागबलि की जाती है।
- संतती प्राप्तीर के लिए
- प्रेतयोनी से होनवाली पीडा दुर करने के लिए
- परिवार के किसी सदस्य के दुर्मरण के कारण इहलोक छोडना पडा हो उससे होन वाली पीडा के परिहारार्थ (दुर्मरण:याने बुरी तरह से आयी मौत ।अपघा, आत्महत्याद और अचानक पानी में डुब के मृत्यु होना इसे दुर्मरण कहते है)
- प्रेतशाप और जारणमारण अभिचार योग के परिहारार्थ के लिऐ।
पितृदोष निवारण के लिए नारायण नागबलि कर्म करने के लिये शास्त्रों मे निर्देशित किया गया है । प्राय: यह कर्म जातक के दुर्भाग्य संबधी दोषों से मुक्ति दिलाने के लिए किये जाते है। ये कर्म किस प्रकार व कौन इन्हें कर सकता है, इसकी पूर्ण जानकारी होना अति आवश्यक है।
ये कर्म जिन जातकों के माता पिता जिवित हैं वे भी ये कर्म विधिवत सम्पन्न कर सकते है। यज्ञोपवीत धारण करने के बाद कुंवारा ब्राह्मण यह कर्म सम्पन्न करा सकता है। संतान प्राप्ती एवं वंशवृध्दि के लिए ये कर्म सपत्नीक करने चाहीए। यदि पत्नी जीवित न हो तो कुल के उध्दार के लिए पत्नी के बिना भी ये कर्म किये जा सकते है । यदि पत्नी गर्भवती हो तो गर्भ धारण से पाचवे महीनेतक यह कर्म किया जा सकता है। घर मे कोई भी मांगलिक कार्य हो तो ये कर्म एक साल तक नही किये जाते है । माता या पिता की मृत्यु् होने पर भी एक साल तक ये कर्म करने निषिध्द माने गये है।
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