ग्राम देवता दादा गुलाशन का धूमधाम से मनाया 5वाँ उर्स-शाहबाद मौहम्मद पुर
-हिंदू-मुसिलम व सभी जाति के लोग पूजते हैं, दादा गुलाशन को
-प्रत्येक बृहस्पतिवार चढ़ार्इ जाती हैं मजार पर चादर, बंटती है गुड़ की भेलियां
-ढ़ेर सारे चमत्कारों की बातें बताते हैं-गांव के निवासी, होती हैं मन्नते पूरी
मुख्य संवाददाता: 21 नवंबर बृहस्पतिवार, गांव शाहबाद मोहम्मद पुर में ग्राम देवता दादा गुलाशन का 5 वाँ उर्स धूमधाम से मनाया गया। इस अवसर पर गांव के पुराने रास्ते रेलवे लार्इन पर बने पुल के नजदीक सिथत दादा गुलाशन की मजार पर सैकड़ों लोगों ने चादर चढ़ार्इ और मन्नतें मांगी। ग्रामवासियों की ओर से दोपहर में विधिवत पूजा अर्चना कर भंडारे का आयोजन किया और शाम को कव्वाली एवं भजन का कार्यक्रम रखा गया। गांव के बुजुर्ग बताते हैं कि सर्दियों से यह मजार यहां बनी हुर्इ हैं और गांव के सभी धर्म व जाति के लोग समान रूप से दादा गुलाशन महाराज की पूजा करते हैं। मजार के सेवादार गांव शाहबाद मोहम्मद पुर निवासी हरिचंद्र ने बताया कि लगभग 400 वर्श पहले जब गांव शाहबाद मोहम्मदपुर यहां बसा था, तब से ही दादा गुलाशन महाराज की मजार यहां स्थापित हैं। इनका नाम बाबा गुलाब हुसैन था। यह मक्का मदीना वंश से हैं। काफी दूर-दूर से लोग उनके दर्शन के लिए आते हैं। जिनमें भारत के साथ-साथ पाकिस्तान के भी लोग आते हैं। बृहस्पतिवार का दिन दादा गुलाशन की विशेश पूजा का दिन होता हैं। इस दिन मजार पर अपनी श्रद्धा अनुसार लोग ज्योत लगाते हैं, चादर चढ़ाते हैं। प्रसाद में गुड़ की भेली बांटी जाती हैं। उन्होंने बताया कि हमारे क्षेत्र में स्थापित पंच पीरों में यह सबसे बड़े माने जाते हैं। जिसमें बाबा गुलाब हुसैन (दादा गुलाशन) शाहबाद मोहम्मद पुर, दादा बार्इवाला (मैट्रो स्टेशन सेक्टर-9 के सामने गांव बागडोला), बाबा काले खाँ व भूरे खाँ (इनिदरा गांधी इंटरनेशनल एयर पोर्ट के अंदर) और समस खाँ (गांव नागल देवत सेंट्रर होटल के साथ) इनके अलावा दो पीर इन्हीं की वंशावली के गांव प्रहलादपुर व मेहरम नगर में सिथत हैं। गांव के बुजुर्ग ओमप्रकाश सोलंकी बताते हैं कि एक बार स्वर्गीय लहरी सिंह सोलंकी रात के समय अपने खेत में पानी दे रहे थे, उनकी दादा गुलाशन में बहुत श्रद्धा थी, तब रात के समय दादा गुलाशन ने उनको दर्शन दिए और कहा कि भारी बारिश होने वाली हैं अपने घर चला जा और सभी बच्चों से आखिरी बार मिल ले। लहरी सिंह उसी समय घर की ओर चल दिये, उन्होंने घर आकर सभी बच्चों को यह बात बतार्इ, तभी बारिश होने लगी और सुबह-सुबह उन्होंने प्राण त्याग दिए। उन्होंने बताया कि गांव में जब भी किसी का पालतू जानवर गाय, भैंस आदि बीमार हो जाते तो, दादा गुलाशन को याद करके उनका प्रसाद बोल देते हैं, तो जानवर ठीक हो जाते हैं। अन्य बुजुर्ग श्रीमती वेदवती लाम्बा बताती हैं कि जब खेती-बाड़ी होती थी और गांव की गलियां कच्ची थी, तब सुबह चार बजे के करीब उन्हें अकसर घोड़े की टाप गलियों में सुनार्इ देती थी और लगता था कि दादा गुलाशन महाराज गांव में पहरे पर घूम रहे हैं। एक बहुत पुरानी कहानी गांव में प्रचलित हैं कि जब सन 1870 के आस-पास दिल्ली रेवाड़ी रेलवे लार्इन बिछार्इ जा रही थी, तो दादा गुलाशन की मजार बीच में पड़ रही थी, तब मजार हटाने की काफी कोशिशें की गर्इ, लेकिन मजार को नहीं हटा पाये। घोड़े-गाडि़यां उल्ट जाती थी, पत्थर डालते, तो सुबह पत्थर मजार से दूर पड़े मिलते थे। इसके बाद रेलवे लार्इन को थोड़ा तिरछा कर दिया गया। जब उस पर रेल चली, तो रेल मजार पर आकर अपने आप रूक गर्इ। बुजुर्ग बताते हैं कि उस समय दादा गुलाशन की पूजा अर्चना की गर्इ और भंडारे आदि किये गए, तब रेल उस लार्इन पर चलनी शुरू हुर्इ, इसके अलावा गांववासी कर्इ प्रकार की मन्नतें पूरी होने, बीमारियां ठीक होने व भूत-प्रेत आदि दिक्कते दूर होने की कर्इ आलौकिक चमत्कारी घटनाएं दादा गुलाशन से संबंधित बताते हैं।
-हिंदू-मुसिलम व सभी जाति के लोग पूजते हैं, दादा गुलाशन को
-प्रत्येक बृहस्पतिवार चढ़ार्इ जाती हैं मजार पर चादर, बंटती है गुड़ की भेलियां
-ढ़ेर सारे चमत्कारों की बातें बताते हैं-गांव के निवासी, होती हैं मन्नते पूरी

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