Sunday, November 24, 2013

संगीन अपराधों में बिना देरी किए दर्ज करें एफआर्इआर

संगीन अपराधों में बिना देरी किए दर्ज करें एफआर्इआर
एफआर्इआर दर्ज न करने
से  कानून का शासन
हल्का होता हैं। इसका
व्यवस्था पर नकारात्मक
असर पड़ता हैं।
 
 -सुप्रीम कोर्ट
स्ट्रीट रिपोर्टर : सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को देशभर की पुलिस को आदेश दिया कि वह अपहरण, रेप, डकैती और हत्या जैसे संज्ञेय अपराधो की तुरंत एफआइआर दर्ज करें और ऐसे मामलों में प्रारंभिक जांच करने की आवश्यकता नहीं हैं। कोर्ट द्वारा  कहा गया कि इस आदेश का पालन नहीं करने वाले थाना इंचार्ज पर उचित कार्यवाही की जाएगी।
मुख्य न्यायाधीश जस्टिस पी सदाशिवम की अध्यक्षता वाली पांच जजों की संविधान पीठ ने फैसला गाजियाबाद की एक नाबालिग लड़की ललिता कुमारी के मामले में दिया। कोर्ट ने उसकी याचिका जनहित याचिका में बदल दी थी।
कैसे मामलों में होगी जांच: संविधान पीठ ने कहा कि प्रारंभिक जांच उन मामलों में की जानी चाहिए, जिनमें आपराधिक कार्यवाही शुरू करने में अनावश्यक विलंब हुआ हो और जांच में सात दिन से अधिक न लगें। मेडिकल लापरवाही, वैवाहिक विवाद, लेन-देन, तीन माह से अधिक पुराने अपराधों की सूचना और जनसेवक पर भ्रष्टाचार के मामलों में पुलिस प्रारंभिक पूछताछ कर सकती हैं। जांच की पूरी जानकारी जनरल डायरी में दर्ज करनी होगी।
एफआर्इआर का मतलब: कोर्ट द्वारा कहा गया कि सीआरपीसी की धारा 154 के तहत संज्ञेय अपराध की एफआर्इआर होने का अर्थ गिरफ्तारी बिलकुल नहीं हैं। गिरफ्तारी की बात केवल काल्पनिक डर हैं। गिरफ्तारी न कर आरोपी को अगि्रम जमानत का मौका देना चाहिए। यदि पुलिस आरोपी को गिरफ्तार कर अधिकारों का दुरूपयोग करती हैं तो धारा 166 के तहत कार्यवाही की जा सकती हैं।
ऐसे करें शिकायत
पीडि़त पक्ष को सबसे पहले स्थानीय थाने में शिकायत करनी चाहिए। थाने में सुनवार्इ न होने पर इलाके के पुलिस उपायुक्त को संपर्क करें और प्रक्रिया का पालन करते हुए यदि पुलिस सुनवार्इ नहीं करती हैं, तो पीडि़त पक्ष अपने मामले को इलाके के महानगर दंडाधिकारी के समक्ष सीआरपीसी की धारा 156 (3) के तहत स्वयं अथवा अधिवक्ता द्वारा प्रस्तुत कर सकता हैं। अगर मामले में न्यायालय को जांच अथवा बरामदगी जैसे तथ्य प्रतीत होते हैं, तो न्यायालय दंड प्रक्रिया संहिता के तहत अधिकारों का प्रयोग कर थाने में मुकदमा दर्ज कर जांच के आदेश देता हैं।
क्या है संज्ञेय अपराध
-संज्ञेय अपराध वे अपराध हैं जिनमें तीन वर्ष या इससे अधिक की सजा हो सकती हैं।
-हालांकि अपराध प्रक्रिया संहिता के तहत पुलिस के लिए शिकायत को एफआइआर रूप में दर्ज करना चाहिए, लेकिन आमतौर पर अभी पुलिस ही तय करती हैं कि शिकायत एफआइआर में तब्दील की जाए या नहीं?
-सुप्रीम कोर्ट ने संज्ञेय अपराधों में प्रारंभिक जांच के बगैर ही एफआइआर अनिवार्य तौर पर दर्ज करने के साथ कहा हैं कि गिरफ्तारी तभी की जाएं जब कुछ सुबूत हासिल हो जाएं।
-वैवाहिक, संपत्ति संबंधी विवादों, भ्रश्टाचार की शिकायत आदि पर एफआइआर के पहले पुलिस प्रारंभिक जांच करें और इसे सात दिन में पूरा कर मामला बंद करने या फिर उसे एफआइआर में तब्दील करने का फैसला करें।
-अगर संज्ञेय अपराध का पता नहीं चलता और मामले को बंद करना हैं, तो उसकी सूचना की एक प्रति शिकायतकर्ता को दी जाएं और उसमें बंद करने का कारण भी बताया जाएं।

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