Friday, November 29, 2013

हर शाम उदासी की झलक  

आइ हर शाम उदासी की झलक साथ लिए
मन के झरोखों मे कोइ पीर बढ़ाने के लिए

बीते हर रोज अनजान गली कूचों में
आइ हर रात भटकते हुए पंछी की तरह

किस को समाझाऊँ कि क्या हाल हुए हैं मेरे
फिर न आए कोइ दिन मेरे बचपन की तरह

दूर उड़-उड़ के मेरे पंख थके हाल हुए
लौटकर आए तो आशियाँ मेरे वीरान मिले

उम्र बीती है मगर जिंदगी कैसे गुजरी
खोजी खुशियाँ तो सुलगते हुए अरमान मिले

अब तो जी करता हे घर छोड़ कहीं खो जाएं
खाक जमीं हो जाए या कि राख कहीं हो जाएं

संझा ढली जलते दिए किस-किस को याद किए
कौन आया था मुझे धीर बधांने के लिए

जब भी लगी प्यास तो आसूँ ही पिए हैं मैंने
दिल में उठे दर्द सितारों से कहें है मैंने

कुछ घड़ी रो के काटी किसी घाट पर धोंए आँसू
मन को बहलाने को कुछ गीत लिखे है मैंने।






मुनीम सिंह (मुनि)

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