लाचार जिंदगी गुजर रही है सड़क पर
मुख्य संवाददाता: दिल्ली में बेघर लोगों को सहायता पहुंचाने के उद्देश्य से बनाए गए रैन बसेरों के बावजूद, अभी भी यहां पर 55 हजार 955 लोग ऐसे हैं, जिनके सिर पर कोर्इ छत नहीं हैं। वह अपना जीवन सड़क के किनारे गुजारने पर मजबूर हैं। दिल्ली सरकार के सभी प्रयासों के बावजूद भी केवल 14 हजार बेघर लोगों के ही रैन बसेरे की सुविधा मिल सकी हैं। इसका खुलासा दिल्ली सरकार ने मंगलवार को दिल्ली हार्इ कोर्ट के सामने दायर किए गए अपने हलफनामे में किया।
रैन बसेरों में जरूरी बुनियादी सुविधाएं मुहैया कराने संबंधी मांग को लेकर दायर एक जनहित याचिका पर यह हलफनामा दायर किया हैं। इस याचिका पर बुद्धवार को सुनवार्इ की जाएगी। दिल्ली अर्बन शेल्टर इंप्रूमेंट बोर्ड (डीयूएसआइबी) के मुख्य कार्यकारी अधिकारी ने हलफनामा दायर कर बताया कि उन्होंने स्वयं राजधानी में बेघर लोगों के लिए बनाए गए विभिन्न प्रकार के रैन बेसरों का निरीक्षण किया और उस दौरान किसी भी रैन बसेरे में कोर्इ भी बुनियादी सुविधा का अभाव नहीं पाया गया। सामाजिक सुविधा संगम के माध्यम से तैयार की गर्इ रिपोर्ट के अनुसार दिल्ली में 55 हजार 955 बेघर लोग सड़कों पर रहते हैं। उनके द्वारा बनाए गए 174 रैन बसेरों में वह करीब 14 हजार बेघर लोगों को ही रख सकते हैं। वहीं मास्टर प्लान के अनुसार वर्ष 2014 में राजधानी की जनसंख्या एक करोड़ 90 लाख हो जाएगी। इसके अनुसार वह रैन बेसरों की जनसंख्या के आधार पर संख्या बढ़ाकर 190 करने जा रहे हैं।
अधिकारियों ने दायर हलफनामे में बताया कि अधिकतर बेघर लोग परिवार के साथ सड़क पर रहते हैं। वह रैन बसेरों में रहने के बदले सड़क के किनारे झुग्गी डालकर रहना अधिक पसंद करते हैं। कुछ वर्श पूर्व राजधानी में रहने वाले कुछ बेघरों की ठंड से मौत हो जाने के बाद दिल्ली हार्इ कोर्ट ने राजधानी में रहने वाले बेघर लोगों के लिए बनाए जाने वाले रैन बसेरों के मामले में स्वत: संज्ञान लिया था। इस मामले में एक स्वयंसेवी संस्था ने भी जनहित याचिका दायर की थी। जिस पर सुनवार्इ करते हुए अदालत ने सरकार को निर्देश दिए हैं।
एक भी बेघर ठंड से मरा तो शेल्टर बोर्ड होगा जिम्मेदार- दिल्ली हार्इ कोर्ट
'' अगर किसी बेघर की खुले में सोने पर ठंड के कारण मौत होती है तो इसके लिए डीयूएसआर्इबी के मुख्य कार्यकारी अधिकारी जिम्म्ेदार होंगे। उन्हें मृतक के परिजनों को मुआवजा देना पड़ेगा - दिल्ली हार्इ कोर्र्ट
रिपोर्टर ब्यूरो: मंगलवार 27 नवम्बर को डीयूएसआइबी के मुख्य कार्यकारी अधिकारी ने अदालत में हलफनामा दायर कर बताया था कि उन्होंने स्वयं राजधानी में बेघर लोगों के लिए बनाए गए विभिन्न रैन-बसेरों का निरीक्षण किया है। कोई भी बेघर खुले में नहीं सो रहा है। विभाग की इस रिपोर्ट पर आपतित जाहिर करते हुए ''शहरी अधिकार मंच-बेघरों के साथ नाम की स्वयंसेवी संस्था की ओर से रीना जार्ज ने बुधवार को कहा कि डीयूएसआइबी अपनी रिपोर्ट में सबकुछ ठीक बता रहा है, जबकि हकीकत इसके उलट है। उल्लेखनीय है कि कुछ वर्ष पूर्व राजधानी में कुछ बेघरों की ठंड के कारण मौत के बाद हाईकोर्ट ने राजधानी में रहने वाले बेघर लोगों के मामले में स्वत: संज्ञान लिया था। इस मामले में एक स्वयंसेवी संस्था ने भी जनहित याचिका दायर की थी। जिस पर सुनवाई करते हुए अदालत ने सरकार को कई निर्देश दिए थे। इन निर्देशों के मद्देनजर दिल्ली सरकार बेघर लोगों के लिए रहने के लिए बनाए गए रैन-बसेरों की बेहतरी के लिए कई कदम उठा चुकी है।
मुख्य संवाददाता: दिल्ली में बेघर लोगों को सहायता पहुंचाने के उद्देश्य से बनाए गए रैन बसेरों के बावजूद, अभी भी यहां पर 55 हजार 955 लोग ऐसे हैं, जिनके सिर पर कोर्इ छत नहीं हैं। वह अपना जीवन सड़क के किनारे गुजारने पर मजबूर हैं। दिल्ली सरकार के सभी प्रयासों के बावजूद भी केवल 14 हजार बेघर लोगों के ही रैन बसेरे की सुविधा मिल सकी हैं। इसका खुलासा दिल्ली सरकार ने मंगलवार को दिल्ली हार्इ कोर्ट के सामने दायर किए गए अपने हलफनामे में किया।
रैन बसेरों में जरूरी बुनियादी सुविधाएं मुहैया कराने संबंधी मांग को लेकर दायर एक जनहित याचिका पर यह हलफनामा दायर किया हैं। इस याचिका पर बुद्धवार को सुनवार्इ की जाएगी। दिल्ली अर्बन शेल्टर इंप्रूमेंट बोर्ड (डीयूएसआइबी) के मुख्य कार्यकारी अधिकारी ने हलफनामा दायर कर बताया कि उन्होंने स्वयं राजधानी में बेघर लोगों के लिए बनाए गए विभिन्न प्रकार के रैन बेसरों का निरीक्षण किया और उस दौरान किसी भी रैन बसेरे में कोर्इ भी बुनियादी सुविधा का अभाव नहीं पाया गया। सामाजिक सुविधा संगम के माध्यम से तैयार की गर्इ रिपोर्ट के अनुसार दिल्ली में 55 हजार 955 बेघर लोग सड़कों पर रहते हैं। उनके द्वारा बनाए गए 174 रैन बसेरों में वह करीब 14 हजार बेघर लोगों को ही रख सकते हैं। वहीं मास्टर प्लान के अनुसार वर्ष 2014 में राजधानी की जनसंख्या एक करोड़ 90 लाख हो जाएगी। इसके अनुसार वह रैन बेसरों की जनसंख्या के आधार पर संख्या बढ़ाकर 190 करने जा रहे हैं।
अधिकारियों ने दायर हलफनामे में बताया कि अधिकतर बेघर लोग परिवार के साथ सड़क पर रहते हैं। वह रैन बसेरों में रहने के बदले सड़क के किनारे झुग्गी डालकर रहना अधिक पसंद करते हैं। कुछ वर्श पूर्व राजधानी में रहने वाले कुछ बेघरों की ठंड से मौत हो जाने के बाद दिल्ली हार्इ कोर्ट ने राजधानी में रहने वाले बेघर लोगों के लिए बनाए जाने वाले रैन बसेरों के मामले में स्वत: संज्ञान लिया था। इस मामले में एक स्वयंसेवी संस्था ने भी जनहित याचिका दायर की थी। जिस पर सुनवार्इ करते हुए अदालत ने सरकार को निर्देश दिए हैं।
एक भी बेघर ठंड से मरा तो शेल्टर बोर्ड होगा जिम्मेदार- दिल्ली हार्इ कोर्ट
'' अगर किसी बेघर की खुले में सोने पर ठंड के कारण मौत होती है तो इसके लिए डीयूएसआर्इबी के मुख्य कार्यकारी अधिकारी जिम्म्ेदार होंगे। उन्हें मृतक के परिजनों को मुआवजा देना पड़ेगा - दिल्ली हार्इ कोर्र्ट
रिपोर्टर ब्यूरो: मंगलवार 27 नवम्बर को डीयूएसआइबी के मुख्य कार्यकारी अधिकारी ने अदालत में हलफनामा दायर कर बताया था कि उन्होंने स्वयं राजधानी में बेघर लोगों के लिए बनाए गए विभिन्न रैन-बसेरों का निरीक्षण किया है। कोई भी बेघर खुले में नहीं सो रहा है। विभाग की इस रिपोर्ट पर आपतित जाहिर करते हुए ''शहरी अधिकार मंच-बेघरों के साथ नाम की स्वयंसेवी संस्था की ओर से रीना जार्ज ने बुधवार को कहा कि डीयूएसआइबी अपनी रिपोर्ट में सबकुछ ठीक बता रहा है, जबकि हकीकत इसके उलट है। उल्लेखनीय है कि कुछ वर्ष पूर्व राजधानी में कुछ बेघरों की ठंड के कारण मौत के बाद हाईकोर्ट ने राजधानी में रहने वाले बेघर लोगों के मामले में स्वत: संज्ञान लिया था। इस मामले में एक स्वयंसेवी संस्था ने भी जनहित याचिका दायर की थी। जिस पर सुनवाई करते हुए अदालत ने सरकार को कई निर्देश दिए थे। इन निर्देशों के मद्देनजर दिल्ली सरकार बेघर लोगों के लिए रहने के लिए बनाए गए रैन-बसेरों की बेहतरी के लिए कई कदम उठा चुकी है।
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